गुरुवार, 2 जून 2022

संप्रेषण की परिभाषा और उसके विभिन्न मॉडल

 संप्रेषण की परिभाषा 

वर्तमान युग संप्रेषण का युग है। आज संप्रेषण शब्द अंग्रेजी कम्युनिकेशन का समानार्थी माना जाता है। कम्युनिकेशन(communication) शब्द लैटिन भाषा के कम्यूनिस(communis) से बना है जिसका अर्थ संप्रेषण है इस प्रकार संदेश संप्रेषण की वह प्रक्रिया है जिसमें सम प्रेषक और श्रोता आपस में आचार, विचार, ज्ञान ,अनुभव और भावनाओं का कुछ संकेतों द्वारा आदान-प्रदान करता है।

परिभाषाएं:-

* न्यूमैन व समर के अनुसार,"सम्प्रेषण दो या दो से अधिक लोगों के मध्य है तथ्य विचारों ,सम्मितियो अथवा भावनाओं के आदान प्रदान का साधन है।" 

* सी. जी. ब्राउन के अनुसार," संप्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के मध्य सूचनाओं का संप्रेषण है चाहे उसके द्वारा विश्वास उत्पन्न हो या ना हो और पारस्परिक विनिमय हो या नहीं, लेकिन इस प्रकार दी गई सूचना प्राप्तकर्ता को समझ आ जानी चाहिए।" 

* थियोहेमैन के अनुसार,"संप्रेषण से तात्पर्य एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचना तथा समझ पहुंचाने की प्रक्रिया है।"

संप्रेषण के विभिन्न मॉडल या प्रारूप 

संप्रेषण के विभिन्न प्रारूप या मॉडल को समझने से पहले यहां मॉडल के अर्थ को जानना आवश्यक है।                                 मॉडल शब्द अंग्रेजी भाषा का है जिसका अर्थ किसी तथ्य, विचार या सिद्धांत को स्पष्ट करना या समझने की प्रक्रिया है। मॉडल कार्य को क्रियान्वित करने की बौद्धिक प्रक्रिया है । हिंदी में मॉडल के लिए प्रतिमान और प्रतिरूप या प्रारूप शब्द ही प्रयोग किए जाते हैं जिनका अर्थ किसी प्रक्रिया के प्रमुख तत्वों को उनके आपसी संबंधों के साथ प्रदर्शित करना है।                • संप्रेषण प्रतिरूप मुख्यतः संप्रेषण प्रक्रिया का प्रस्तुतीकरण है •संप्रेषण प्रक्रिया परिस्थितियों, उद्देश्यों और श्रोता की आवश्यकता अनुसार परिवर्तित होती रहती है अतः संप्रेषण प्रतिरूप ओं की संख्या तथा उनके वर्गीकरण के अनेक रूप है।  •सामाजिक सांस्कृतिक रूप से समय वादी प्रतिरूप उदारवादी मॉडल, इस्लामिक मॉडल, ईसाई मॉडल एवं वैदिक मॉडल आदि प्रमुख है।                                                                         •साम्यवादी प्रतिरूप समाज में शोषक शोषित के विचार पर आधारित है इसमें सोच को के प्रति घृणा और शहीदों के प्रति करुणा का भाव दिखता है।

1) SMR संप्रेषण प्रतिरूप 

संप्रेषण संप्रेषण का सबसे सरल प्रतिरूप एसएमआर है इसीलिए यह एक सरल रेखीय संप्रेषण प्रतिरूप है जिसमें तीन तत्व प्रमुख होते हैं संप्रेषित करने वाला संप्रेषक, संदेश और संदेश प्राप्त करने वाला यानी प्राप्त करता है।

   S                     M                      R

     ⬇                    ⬇                       ⬇

 संप्रेषक          संदेश     संदेश प्राप्तकर्ता 

   (sender)           (message)         (Receiver)

➡ संदेश भेजने वाले व्यक्ति को संचारित कहा जाता है।        ➡ सूचना ज्ञान या विचार जिसका संप्रेषण किया जाता है             संदेश  कहलाता है।                                                      ➡ संदेश प्राप्त करने वाला व्यक्ति प्राप्तकर्ता, श्रोता या दर्शक         कहलाता है।

संप्रेषक संदेश को किसी भाषा अथवा अन्य चिन्हों द्वारा प्राप्तकर्ता तक पहुंचाता है यह प्रतिरूप एक तरह से सभी संप्रेषण प्रति रूपों का आधार है क्योंकि इस प्रतिरूप के आधार पर ही संप्रेषण के अन्य प्रति रूपों का निर्माण हुआ है।

SMR प्रतिरूप संप्रेषण प्रक्रिया में संप्रेषण की एक स्थाई प्रक्रिया को दर्शाता है जोकि संप्रेषण के संदेश भेजने से शुरू होकर संदेश प्राप्तकर्ता के संदेश ग्रहण करने पर समाप्त हो जाती है परंतु संप्रेषण प्रक्रिया में व्यक्ति या समाज के स्तर पर संप्रेषण का कभी अंत नहीं होता।

2) अरस्तु का संप्रेषण मॉडल

अरस्तु अरस्तु संप्रेषण मॉडल पर विचार करने वाले पहले व्यक्ति थे अरस्तु संप्रेषण के लिए पांच तत्व को महत्वपूर्ण मानते हैं - वक्ता वक्ता, संदेश , संदेश प्राप्तकर्ता ,अवसर  और प्रभाव ।       परंतु अरस्तु अपने मॉडल में वक्ता को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं।

अरस्तु के मॉडल के अनुसार वक्ता संप्रेषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है यह संप्रेषण का पूरा भार अपने कंधों पर लेता है प्रेषक पहले एक ऐसी सामग्री तैयार करता है जिससे मैं अपने विचारों ,श्रोताओं या प्राप्तकर्ताओ को प्रभावित करने में सफल हो। इसीलिए वह अपने भाषण में उन मुद्दों को उठाता है जो जनता को प्रभावित कर सके या जो सुनना चाहते हैं अरस्तु का कहना है। कि वक्ता इस तरह से संवाद करता है कि सुनने वाले प्रभावित होते हैं और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं इस मॉडल के अनुसार वक्ता को संप्रेषण में अपने शब्दों और सामग्री के चयन के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए उसे अपने लक्षित दर्शकों को समझना चाहिए और फिर अपना भाषण तैयार करना चाहिए। 

 वक्ता ➡ संदेश ➡ अवसर ➡ श्रोता ➡ प्रभाव 

अतः अरस्तु का संप्रेषण मॉडल समूह - संप्रेषण पर आधारित है यह संप्रेषण प्रतिरूप संप्रेषण पर केंद्रित है यह प्रतिरूप में व्यक्ति संप्रेषण के सूत्र नहीं है।

यह प्रतिरूप या मॉडल प्राचीन काल में तो प्रभावी रहा होगा परंतु आज यह अधिक प्रभावशाली नहीं ठहरता इस प्रतिरूप में संप्रेषण के कई पहलुओं का जिक्र नहीं है जैसे यह प्रतिरूप जनसमूह को केवल निष्क्रिय भीड़ के रूप में देखता है साथ ही इसमें अशाब्दिक संप्रेषण का कोई जिक्र नहीं है।

3) लॉसवेल का संप्रेषण मॉडल 

लॉसवेल ने सन 1948 ई. में संप्रेषण का मॉडल प्रस्तुत किया जिसे दुनिया का पहला व्यवस्थित मॉडल कहा जाता है इस मॉडल के अनुसार प्रेषक या वक्ता उचित माध्यम का प्रयोग करके प्राप्तकर्ता को अपने विचारों से प्रभावित कर सकता है अरस्तु ने जहां प्रेषक को महत्वपूर्ण माना था वही लस्वेल में माध्यम को ज्यादा महत्व दिया है इन का मॉडल प्रश्न के रूप में है लॉसवेल के अनुसार- संप्रेषण की किस प्रक्रिया को समझने के लिए सबसे बेहतर तरीका निम्न पांच प्रश्नों के उत्तर का तलाश करना है:-       

 कौन कहता है ⇒( संप्रेषक )                                        • क्या कहता है ⇒( संदेश )                                          • किस माध्यम से कहता है  ⇒( माध्यम )                        • किसको कहता है ⇒( संदेश प्राप्तकर्ता )                      • इसका प्रभाव क्या है ⇒( प्रभाव )

लॉसवेल के प्रारूप में हम पाते हैं कि स्त्रोत कौन यानी संप्रेषक अथवा नियंत्रक का विश्लेषण किया जाता है इसके बाद क्या कहता है (संदेश) का विश्लेषण किया जाता है कि यह पता चल सके कि संदेश की विषय -वस्तु क्या है? किस माध्यम से (माध्यम) के अंतर्गत माध्यम के विषय में यह शोध किया जा सकता है की कितने विषय क्षेत्र तक संदेश का प्रचार प्रचार प्रसार किया जा सकता है किससे (श्रोता )का विश्लेषण कर यह खोज की जाती है कि श्रोता की समझ व्यवहार आवश्यकता आकार एवं प्रवृत्ति आदि क्या है प्रभाव के अंतर्गत यह विश्लेषण किया जाता है कि संप्रेषण प्रक्रिया का श्रोताओं बर क्या प्रभाव पड़ा। लॉसवेल इस प्रतिरूप में यह मानकर चलते हैं कि संदेश प्राप्तकर्ता पर संप्रेषण प्रक्रिया प्रभाव निश्चित रूप से पड़ेगा ही।

लॉसवेल का यह संप्रेषण प्रतिरूप अपने आप में महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें संप्रेषण की लगभग सभी संभावनाएं समाहित है परंतु इसकी एक छोटी सी खामी यह है कि इसमें उन्होंने प्रतिपुष्टि या फीडबैक का उल्लेख नहीं किया परंतु प्रभाव के अंतर्गत इसे समझा जा सकता है।

4) ब्रैडॉक का संप्रेषण मॉडल 

ब्रैडॉक ने सन् 1958 में अपना संप्रेषण प्रतिरूप प्रस्तुत किया। लॉसवेल के संप्रेषण प्रतिरूप में थोड़ा - सा परिवर्तन- परिवर्द्धन कर अपना संप्रेषण प्रस्तुत किया। इन्होंने लॉसवेल द्वारा प्रतिपादित संप्रेषण प्रतिरूप में निहित तत्वों के अतिरिक्त दो अन्य संप्रेषण तत्वों - परिस्थिति एवम् उद्देश्य को सम्मिलित कर अपना संप्रेषण मॉडल प्रस्तुत किया।

1) परिस्थितियां :- किन परिस्थितियों में संप्रेषक ने संदेश को संप्रेषित किया।                                                               2) उद्देश्य :- संदेश संप्रेषण का उद्देश्य क्या है?

⁕ इनके द्वारा प्रस्तुत संप्रेषण प्रतिरूप के  प्रमुख तत्त्व है- 

1) कौन ( स्रोत )                                                                2) क्या कहता है ( संदेश )                                                  3) किस माध्यम से ( माध्यम )                                              4) किससे ( संदेश प्राप्तकर्ता )                                            5) किन परिस्थितियों में ( परिस्थितियां )                                6) किस उद्देश्य से ( उद्देश्य )                                                7) प्रभाव क्या है ( प्रभाव ) 

इनका संप्रेषण प्रतिरूप बहुत हद तक सही एवं संप्रेषण का एक प्रभावी प्रतिरूप है परंतु फिर भी यह प्रतिरूप कुछ कमियों को भी लिए हुए हैं जैसे:-

1) इस प्रतिरूप में बताया गया है कि वक्ता श्रोता को प्रभावित करने के उद्देश्य से संप्रेषण करता है किंतु सदैव ऐसा नहीं होता जैसे घर परिवार में जो संप्रेषण क्रिया होती है वहां प्रभाव डालने से अधिक सामान्य रूप से सूचना का आदान प्रदान होता है।

2) इस प्रतिरूप का सीधा निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है क्योंकि संप्रेषण प्रक्रिया में पत्र-पत्रिकाओं का पाठक वर्ग ,टी.वी के दर्शक वर्ग से पृथक होता है तथा रेडियो के दर्शक वर्ग भी अपना अलग महत्व रखता है इस प्रकार इनका लक्षित समूह भिन्न-भिन्न होता है।

3) इस प्रतिरूप में फीडबैक को जगह नहीं दी गई है।

4) इस संप्रेषण प्रक्रिया में संप्रेषण के प्रभाव को अवश्यंभावी  मानते हैं परंतु यह जरूरी नहीं है।

5) शैनन और वीवर का संप्रेषण मॉडल

सेना और विवर मॉडल संप्रेषण का सबसे लोकप्रिय मॉडल है और दुनिया भर में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है इस मॉडल को शैनन एवं वीवर ने 1949 ई. में प्रस्तुत किया था। शैनन और वीवर मॉडल के अनुसार संदेश वास्तव में उस व्यक्ति से उत्पन्न होता है जिसके पास विचार होता है या जिसके पास जानकारी होती है यह मॉडल मुख्यतः रेडियो और टेलीफोन के तकनीकी संप्रेषण से संबंधित है इनके अनुसार संप्रेषण प्रक्रिया में पांच तत्व निहित है जो सूचना स्त्रोत से प्रारंभ होकर प्रेषक द्वारा कोलाहल स्त्रोत को पार करते हुए संदेश के रूप में उनके लक्ष्य तक प्राप्तकर्ता के पास संप्रेषित होते हैं। इस प्रारूप के अनुसार संदेश श्रोता तक सही सही तभी पहुंच पाता है जब माध्यम में कोई शोर-शराबा ना हो।

रेखाचित्र



 

इस प्रारूप के अनुसार संप्रेषण में प्रेषक की अहम भूमिका होती है जो सूचना स्त्रोत से विचारों को एकत्रित करके संप्रेषण के माध्यम से संदेश को उनके प्राप्तकर्ता तक पहुंचाता है यह प्रेषक संदेश को संदेश बद्ध करके भेजता है इस मॉडल में कोलाहल या बाह्य शोर को भी महत्व दिया गया है इनका मत्था की संप्रेषण प्रक्रिया में जिस माध्यम से संदेश प्रेषित होते हैं उसमें शोरगुल का पाया जाना स्वाभाविक है जिनकी वजह से संदेश में अशुद्धि भी मिली होती है इसीलिए यह मॉडल संदेश को सांकेतिक भाषा में परिवर्तन पर जोर देता है ताकि इन अशुद्धियों को निकालकर शुद्ध संदेश को संप्रेषित किया जा सके।

6) विल्बर श्रेम का संप्रेषण मॉडल 

विल्बर सीएम ने शान 1954 में अपना प्रतिरूप प्रस्तुत किया उन्होंने अपना संप्रेषण प्रतिरूप वीवर और शैनन के संप्रेषण प्रतिरूप में संशोधन करते हुए अपना संप्रेषण विकसित किया। इन्होंने अपने प्रतिरूप के तीन प्रारूप प्रस्तुत किए ।जो निम्न है:-

पहला : विल्बर ने अपने पहले संप्रेषण प्रतिरूप को बहुत ही सरल रूप में प्रस्तुत किया उन्होंने इसमें बताया कि संप्रेषण या स्त्रोत के उद्देश्य है आसानी से संदेश को श्रोता या लक्ष्य तक पहुंचाना।


    


दूसरा: विल्बर ने अपने दूसरे संप्रेषण प्रतिरूप में यह दर्शाया की संप्रेषण में एक-दूसरे से बातचीत और अनुभव क्षेत्र संबंधी संदेश के आदान-प्रदान पर वातावरण का प्रभाव कितना पड़ता है इनके पहले प्रतिरूप में परिवर्तन के साथ ही इस तथ्य की जानकारी मिलती है कि स्त्रोत या संप्रेषक और संदेश प्राप्तकर्ता का अनुभव क्षेत्र एक समान होता है फलस्वरुप इससे संकेत भी प्रभावित होते हैं। 



 


तीसरा: विल्बर अपने तीसरे प्रतिरूप में बताया है कि संप्रेषक द्वारा प्रदान की गई जानकारी अपने लक्ष्य ग्रहणकर्ता तक भले ही पहुंच जाए परंतु प्रतिपुष्टि द्वारा इस संदेश को और अधिक पुख्ता किया जा सकता है। विल्बर ने अपने इस प्रतिरूप में प्रतिपुष्टि के महत्व को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। इन्होंने अपने प्रतिरूप में बहुआयामी पक्षों तथा अंतः क्रियाओं पर विशेष बल दिया है।

⁕ विल्बर के संप्रेषण प्रतिरूप के मुख्य तत्व निम्न है:- 

1) स्त्रोत (source)                                                        2) संप्रेषक (Encoder)                                                  3) संकेत (Signal)                                                        4) प्राप्तकर्ता (Decoder)                                               5) गंतव्य (Destination)

पहले स्त्रोत अपने संदेश को एनकोड करता है यह एनकोड किया गया संदेश सिग्नल के रूप में अपने लक्ष्य तक पहुंचता है जो संदेश को डिकोड करता है। 

7) सी. ई. आसगुड और विल्बर का सरकुलर संप्रेषण मॉडल

सी. ई. आसगुड और विल्बर ने सन् 1954 में  प्रचलित मॉडल से कुछ भिन्न मॉडल प्रस्तुत किया। इस प्रक्रिया में संप्रेषक और प्राप्तकर्ता के व्यवहार पर अधिक बल दिया गया है। इसे सरकुलर मॉडल के नाम से भी जाना जाता है। शैनन और वीवर की भांति ट्रांसमीटर और रिसीवर शब्द का प्रयोग नहीं किया बल्कि उसकी जगह व्याख्याता, संप्रेषक और प्राप्तकर्ता की प्रक्रिया का अलग- अलग उल्लेख किया है। इस संप्रेषण प्रक्रिया में इनकोडिंग (encoding) को संप्रेषण के रूप में तथा डिकोडिंग(decoding) को प्राप्तकर्ता के रूप में देखा जाता है।


             

उपयुक्त चित्र का विश्लेषण करने पर हम देखते हैं कि

 ➡Encoding  की प्रक्रिया के अंतर्गत संप्रेषक अपने संदेश को बोल कर लिख कर या फिर संकेतों द्वारा प्राप्त करता कि समाज के अनुरूप अपने संदेश को प्रस्तुत करता है।                ➡ Decoding प्रक्रिया के अंतर्गत किए गए संदेश का विश्लेषण करके संदेश प्राप्तकर्ता उस संदेश का अर्थ निकालता है और उसका मूल्यांकन करता है।

8) न्यूकॉम्ब का ABX मॉडल 

न्यूकॉम्ब ने अपने संप्रेषण प्रतिरूप सन् 1453 में अपना एक शोध ' An Approach to the Study of Communicative Acts' नाम से प्रकाशित कराया। इनके संप्रेषण प्रक्रिया मुख्यतः तीन तत्व है - स्त्रोत ,संदेश और ग्रहीता।

इस मॉडल में इस मॉडल में A और B संप्रेषक तथा X सामाजिक संदर्भ है जिसमें संप्रेषण प्रक्रिया हो रही है A और B दोनों X से बातचीत करते हैं और साथ ही वे दोनों आपस में भी बातचीत कर रहे हैं संप्रेषण की प्रक्रिया में आवश्यक समायोजन से संतुलन बनाए रखा जाता है इस प्रकार लगातार और दो लोगों के बीच फीडबैक प्राप्त किया जा सकता है इससे न्यूकॉम्ब का संप्रेषण प्रतिरूप सामाजिक संबंधों के निर्माण एवं विकास में संप्रेषण की भूमिका को व्यक्त करता है।



 


  इनके अनुसार संप्रेषण कि इस प्रक्रिया में दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में एक दूसरे की ओर उन्मुख हो सकते हैं और बाहरी वातावरण की वस्तुओं से भी संपर्क बना सकते हैं।




शुक्रवार, 20 मई 2022

अभाषिक संप्रेषण - अर्थ और विशेषताएं

                                                                                                                                                                                                                                                             

 आभाषिक संप्रेषण (nonverbal communication)

अभाषिक संप्रेषण से अभिप्राय भाषा रहित संदेशों को संप्रेषित करने और उसे प्राप्त करने की प्रक्रिया अर्थात बिना बोले या बिना भाषा के प्रयोग किए अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करना, अभाषिक संप्रेषण कहलाता हैं। अंग्रेजी में यह nonverbal communication के नाम से जाना जाता हैं। अभाषिक संप्रेषण के लिए आशाब्दिक संप्रेषण या अवाचिक संप्रेषण का भी प्रयोग किया जाता हैं।

अभाषिक संप्रेषण की प्रक्रिया प्राचीन काल से ही मानव समाज में विद्यमान हैं और आज भी किसी न किसी रूप में प्रयुक्त हो रही हैं। मनुष्य के अलावा जितने भी प्राणी है वे दूसरे तक अपनी भावनाए और संदेश संप्रेषित करने के लिये अभाषिक संप्रेषण का प्रयोग करते है इसके अलावा मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी हैं जो भाषिक संप्रेषण के साथ साथ अभाषिक संप्रेषण का भी प्रयोग करता है।

संप्रेषण प्रक्रिया के मुख्य दो रूप होते हैं:-

1) भाषिक संप्रेषण

2) अभाषिक संप्रेषण 

 अभाषिक सम्प्रेषण प्रक्रिया में बिना बोले यानी शारीरिक भंगिमाओं, हाव भाव , स्पर्श, आंखों एवं चेष्टाओं के माध्यम से संदेश का संप्रेषण किया जाता है। मौखिक ध्वनियां  जिन्हे शब्द नहीं माना जाता है  जैसे - घुरघुराना या गुनगुनाना आदि अभाषिक संप्रेषण के उदाहरण है। 

जब शब्दों द्वारा भावाभिव्यक्ति होती है तो उसे भाषिक संप्रेषण कहते हैं परंतु हम कभी-कभी शब्दों द्वारा अपनी भावाभिव्यक्ति पूर्णत: नहीं कर पाते हैं। ऐसे में हम सूक्ष्म, संकेतों, प्रतिको, अपने हाव-भाव आदि से भावाभिव्यक्ति करते है, इसके अलावा भी कई अन्य माध्यम है जिसके द्वारा हम भावाभिव्यक्ति करते हैं जैसे- चित्र, नृत्य , कथक आदि द्वारा।    

अभाषिक संप्रेषण का साक्ष्य में ऐतिहासिक विकासक्रम में हमे आदिमानव की गुफाओं में प्रस्तर वस्तुओ और भित्ति चित्रों से लेकर नृत्य, नृत्य नाटिका , मुक प्रदर्शन जैसे अभिव्यंजनात्मक और अमूर्त कला के रूप में दिखाई देता है। आधुनिकतम कला रूपों में अभाषिक संप्रेषण की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारतीय नृत्य की कई शैलियाँ प्रचलित है जिसमें अभाषिक संप्रेषण द्वारा संदेशों को संप्रेषित किया जाता है कथक, भरतनाट्यम, कथकली, नौटंकी ,ओडिसी ,मणिपुरी, कुचिपुड़ी आदि नृत्य शैलियाँ में बिना शब्दों के प्रयोग के भी सशक्त भावाभिव्यक्ति करते हैं।

इन नृत्य या नृत्य नाटिकाओं के द्वारा श्रृंगार ,वीर , रौद्र, हास्य, करुण आदि रसों की अभिव्यक्ति भी अभाषिक संप्रेषण द्वारा होता है। मुखौटे, यातायात संकेत, वर्दियां(स्कूल बच्चे, फौजी, पुलिस आदि की), राष्ट्रों के ध्वज और उन पर बने चित्र आदि भी अभाषिक संप्रेषण के रूप है।

किसी भी भाषा के लिखित रूप में भी अभाषिक तत्व मौजूद होते हैं जैसे: हस्तलेखन का तरीका जिसमे विराम चिन्ह, कौमा,दो शब्दों के बीच की खाली जगह आदि । शब्दों के स्थान पर वाक्यों में इमोजी का प्रयोग करके भी संदेश संप्रेषित किया जाता है वर्तमान समय में व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर, टेलीग्राम आदि जैसे सोशल मीडिया की भाषा में इमोजी जैसे अबासिक तत्वों का अधिक प्रयोग किया जाता है                                                                                                                           


                                                                                                                                                                                                      अभाषिक संप्रेषण प्रक्रिया में मुख मंडल की अलग अलग स्थितियां, आंखों के संकेत, शारीरिक भाव आदि सम्मिलित रहती है कई बार आपसी बातचीत के दौरान हम लोग कुछ भी नहीं करते हैं तो हमारे चेहरे के हाव-भाव से समझ जाते हैं कि हम क्या व्यक्त करना चाह रहे हैं? 

अभाषिक संप्रेषण की स्पष्टता के लिए हिंदी के मशहूर कवि बिहारी और रहीम के दोहे उपयुक्त हैं:-

राहिम- "खैर, खून, खांसी खुशी, बैर प्रीति, मतपान,।                             रहिमन दाबे न दबे जानत सकल जहान।।

बिहारी- 'कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत मिलत लजियात।              भरे भौन में करत है, नयनन ही सां बात।।

उपयुक्त उदाहरण में अभाषिक संप्रेषण की दृष्टि से शारीरिक भाव भंगिमाओं, मुखमंडल की विभिन्न अभिव्यक्ति सहित नेत्रों का संदेश संप्रेषण आदि मानव संप्रेषण की पराभाषायी  रूप सम्मिलित है।                                                                  एक अनुमान के अनुसार संप्रेषण में 50% संप्रेष्य संदेश केवल चेहरे के हाव भाव और शरीर के विविध अगों के संचालन द्वारा किया जाता है ऐसे ही मौखिक संबंध में भी प्रतिक्रिया अंग संचालन के माध्यम से व्यक्त होती है।

*अभाषिक संप्रेषण प्रक्रिया में संदेश को मोटे तौर पर तीन रूप में अभिव्यक्त किया जाता हैं:-.                                                         1) संकेत द्वारा    2) क्रिया द्वारा     3) वस्तु द्वारा           अभाषिक या अशाब्दिक संप्रेषण का आधार जैविक अथवा  सामाजिक या दोनों हो सकता है 

NOTE:- अभाषिक संप्रेषण का प्रथम वैज्ञानिक अध्ययन 1872 ई. मे चार्ल्स डार्विन ने किया था । उन्होंने अपनी पुस्तक 'द एक्सप्रेशन ऑफ इमोशन इन मैन एंड एनिमल ' मे तर्क दिया है कि सभी स्तनपायी अपने चेहरे पर भाव को दर्शाते हैं। उन्होंने शेरों, बाघों, कुत्तों आदि के बीच बातचीत को देखा और महसूस किया कि वह भी इशारों और भाव में सवाद करते हैं और स्पष्ट किया है कि यह स्तनपयी जानवरों द्वारा किए जाने वाला अभाषिक संप्रेषण है बाद में कई अन्य वैज्ञानिकों ने डार्विन के सिद्धांत को आगे बढ़ाया।

अभाषिक संप्रेषण की विशेषताएं

1) अभाषिक संप्रेषण में संप्रेषक की कोई मुद्रा या फिर कोई क्रिया हो सकती है साथ ही ये मुद्रा या क्रिया शारीरिक भंगीमांओं की भांति अत्याधिक जटिल या नेत्र के इशारे जैसी हो सकती है।

2) अत्याधिक संप्रेषण में व्यक्त संदेश मौखिक संदेश से भिन्न हो सकता है।

3) इस संप्रेषण की व्याख्या किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति या सामाजिक अनुभव के रूप में की जा सकती है।

4) अभाषिक संप्रेषण का प्रभावी प्रयोग सभी लोग आसानी से नहीं कर सकते।

5) अभाषिक संप्रेषण का अधिकांशतः उपयोग तब किया जाता है जब  प्रेषक और प्रापक आमने समने होते हैं।


























संप्रेषण की परिभाषा और उसके विभिन्न मॉडल

 संप्रेषण की परिभाषा  वर्तमान युग संप्रेषण का युग है। आज संप्रेषण शब्द अंग्रेजी कम्युनिकेशन का समानार्थी माना जाता है। कम्युनिकेशन(communica...