शुक्रवार, 20 मई 2022

अभाषिक संप्रेषण - अर्थ और विशेषताएं

                                                                                                                                                                                                                                                             

 आभाषिक संप्रेषण (nonverbal communication)

अभाषिक संप्रेषण से अभिप्राय भाषा रहित संदेशों को संप्रेषित करने और उसे प्राप्त करने की प्रक्रिया अर्थात बिना बोले या बिना भाषा के प्रयोग किए अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करना, अभाषिक संप्रेषण कहलाता हैं। अंग्रेजी में यह nonverbal communication के नाम से जाना जाता हैं। अभाषिक संप्रेषण के लिए आशाब्दिक संप्रेषण या अवाचिक संप्रेषण का भी प्रयोग किया जाता हैं।

अभाषिक संप्रेषण की प्रक्रिया प्राचीन काल से ही मानव समाज में विद्यमान हैं और आज भी किसी न किसी रूप में प्रयुक्त हो रही हैं। मनुष्य के अलावा जितने भी प्राणी है वे दूसरे तक अपनी भावनाए और संदेश संप्रेषित करने के लिये अभाषिक संप्रेषण का प्रयोग करते है इसके अलावा मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी हैं जो भाषिक संप्रेषण के साथ साथ अभाषिक संप्रेषण का भी प्रयोग करता है।

संप्रेषण प्रक्रिया के मुख्य दो रूप होते हैं:-

1) भाषिक संप्रेषण

2) अभाषिक संप्रेषण 

 अभाषिक सम्प्रेषण प्रक्रिया में बिना बोले यानी शारीरिक भंगिमाओं, हाव भाव , स्पर्श, आंखों एवं चेष्टाओं के माध्यम से संदेश का संप्रेषण किया जाता है। मौखिक ध्वनियां  जिन्हे शब्द नहीं माना जाता है  जैसे - घुरघुराना या गुनगुनाना आदि अभाषिक संप्रेषण के उदाहरण है। 

जब शब्दों द्वारा भावाभिव्यक्ति होती है तो उसे भाषिक संप्रेषण कहते हैं परंतु हम कभी-कभी शब्दों द्वारा अपनी भावाभिव्यक्ति पूर्णत: नहीं कर पाते हैं। ऐसे में हम सूक्ष्म, संकेतों, प्रतिको, अपने हाव-भाव आदि से भावाभिव्यक्ति करते है, इसके अलावा भी कई अन्य माध्यम है जिसके द्वारा हम भावाभिव्यक्ति करते हैं जैसे- चित्र, नृत्य , कथक आदि द्वारा।    

अभाषिक संप्रेषण का साक्ष्य में ऐतिहासिक विकासक्रम में हमे आदिमानव की गुफाओं में प्रस्तर वस्तुओ और भित्ति चित्रों से लेकर नृत्य, नृत्य नाटिका , मुक प्रदर्शन जैसे अभिव्यंजनात्मक और अमूर्त कला के रूप में दिखाई देता है। आधुनिकतम कला रूपों में अभाषिक संप्रेषण की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारतीय नृत्य की कई शैलियाँ प्रचलित है जिसमें अभाषिक संप्रेषण द्वारा संदेशों को संप्रेषित किया जाता है कथक, भरतनाट्यम, कथकली, नौटंकी ,ओडिसी ,मणिपुरी, कुचिपुड़ी आदि नृत्य शैलियाँ में बिना शब्दों के प्रयोग के भी सशक्त भावाभिव्यक्ति करते हैं।

इन नृत्य या नृत्य नाटिकाओं के द्वारा श्रृंगार ,वीर , रौद्र, हास्य, करुण आदि रसों की अभिव्यक्ति भी अभाषिक संप्रेषण द्वारा होता है। मुखौटे, यातायात संकेत, वर्दियां(स्कूल बच्चे, फौजी, पुलिस आदि की), राष्ट्रों के ध्वज और उन पर बने चित्र आदि भी अभाषिक संप्रेषण के रूप है।

किसी भी भाषा के लिखित रूप में भी अभाषिक तत्व मौजूद होते हैं जैसे: हस्तलेखन का तरीका जिसमे विराम चिन्ह, कौमा,दो शब्दों के बीच की खाली जगह आदि । शब्दों के स्थान पर वाक्यों में इमोजी का प्रयोग करके भी संदेश संप्रेषित किया जाता है वर्तमान समय में व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर, टेलीग्राम आदि जैसे सोशल मीडिया की भाषा में इमोजी जैसे अबासिक तत्वों का अधिक प्रयोग किया जाता है                                                                                                                           


                                                                                                                                                                                                      अभाषिक संप्रेषण प्रक्रिया में मुख मंडल की अलग अलग स्थितियां, आंखों के संकेत, शारीरिक भाव आदि सम्मिलित रहती है कई बार आपसी बातचीत के दौरान हम लोग कुछ भी नहीं करते हैं तो हमारे चेहरे के हाव-भाव से समझ जाते हैं कि हम क्या व्यक्त करना चाह रहे हैं? 

अभाषिक संप्रेषण की स्पष्टता के लिए हिंदी के मशहूर कवि बिहारी और रहीम के दोहे उपयुक्त हैं:-

राहिम- "खैर, खून, खांसी खुशी, बैर प्रीति, मतपान,।                             रहिमन दाबे न दबे जानत सकल जहान।।

बिहारी- 'कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत मिलत लजियात।              भरे भौन में करत है, नयनन ही सां बात।।

उपयुक्त उदाहरण में अभाषिक संप्रेषण की दृष्टि से शारीरिक भाव भंगिमाओं, मुखमंडल की विभिन्न अभिव्यक्ति सहित नेत्रों का संदेश संप्रेषण आदि मानव संप्रेषण की पराभाषायी  रूप सम्मिलित है।                                                                  एक अनुमान के अनुसार संप्रेषण में 50% संप्रेष्य संदेश केवल चेहरे के हाव भाव और शरीर के विविध अगों के संचालन द्वारा किया जाता है ऐसे ही मौखिक संबंध में भी प्रतिक्रिया अंग संचालन के माध्यम से व्यक्त होती है।

*अभाषिक संप्रेषण प्रक्रिया में संदेश को मोटे तौर पर तीन रूप में अभिव्यक्त किया जाता हैं:-.                                                         1) संकेत द्वारा    2) क्रिया द्वारा     3) वस्तु द्वारा           अभाषिक या अशाब्दिक संप्रेषण का आधार जैविक अथवा  सामाजिक या दोनों हो सकता है 

NOTE:- अभाषिक संप्रेषण का प्रथम वैज्ञानिक अध्ययन 1872 ई. मे चार्ल्स डार्विन ने किया था । उन्होंने अपनी पुस्तक 'द एक्सप्रेशन ऑफ इमोशन इन मैन एंड एनिमल ' मे तर्क दिया है कि सभी स्तनपायी अपने चेहरे पर भाव को दर्शाते हैं। उन्होंने शेरों, बाघों, कुत्तों आदि के बीच बातचीत को देखा और महसूस किया कि वह भी इशारों और भाव में सवाद करते हैं और स्पष्ट किया है कि यह स्तनपयी जानवरों द्वारा किए जाने वाला अभाषिक संप्रेषण है बाद में कई अन्य वैज्ञानिकों ने डार्विन के सिद्धांत को आगे बढ़ाया।

अभाषिक संप्रेषण की विशेषताएं

1) अभाषिक संप्रेषण में संप्रेषक की कोई मुद्रा या फिर कोई क्रिया हो सकती है साथ ही ये मुद्रा या क्रिया शारीरिक भंगीमांओं की भांति अत्याधिक जटिल या नेत्र के इशारे जैसी हो सकती है।

2) अत्याधिक संप्रेषण में व्यक्त संदेश मौखिक संदेश से भिन्न हो सकता है।

3) इस संप्रेषण की व्याख्या किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति या सामाजिक अनुभव के रूप में की जा सकती है।

4) अभाषिक संप्रेषण का प्रभावी प्रयोग सभी लोग आसानी से नहीं कर सकते।

5) अभाषिक संप्रेषण का अधिकांशतः उपयोग तब किया जाता है जब  प्रेषक और प्रापक आमने समने होते हैं।


























1 टिप्पणी:

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